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❍ 25 / 06 / 16 की
मुरली से
चार्ट ❍
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TOTAL MARKS:- 100 ⇚
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शिवभगवानुवाच
:-
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रोज
रात को सोने से पहले बापदादा को पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो धरमराजपुरी में
जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
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1
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होमवर्क
(Marks:
3*5=15)
➢➢
बाप की श्रीमत पर
√श्रेष्ठ
कर्म√
किये ?
➢➢
किसी भी
×विनाशी
चीज़×
का नशा नहीं रखा ?
➢➢
√सेंसिबुल√
बनकर रहे ?
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2
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विशेष
अभ्यास
(Marks:2*10=20)
➢➢
स्थूल और सूक्षम
दोनो रीति से स्वयं को
√बिजी√
रखा ?
➢➢
निश्चय और फलक से कहते रहे :- "√बाबा
मेरे साथ है√"
?
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3
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विशेष पुरुषार्थ
(Marks:
15)
(
इस रविवार की अव्यक्त मुरली से... )
➢➢
सेवा
करते हुए √अन्तर्मुखता√
का
अनुभव किया ?
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4
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स्वमान का अभ्यास
(Marks:-10)
➢➢
मैं आत्मा
मायाजीत विजयी आत्मा हूँ ।
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आज का योगाभ्यास /
दृढ़ संकल्प :-
➳ _
➳
योगयुक्त स्तिथि में बैठ जाएँ... मन को शुद्ध संकल्पों में स्तिथ करें... मैं
श्वेत वस्त्रधारी मास्टर विश्वकल्याणकारी शिक्षक हूँ... परमात्मा पालना को स्वयं
में भरकर औरों को बाप समान बनाने वाली दिव्य आत्मा हूँ...
➳ _
➳
मैं ईश्वरीय शिक्षा द्वारा काँटों को फूल,
मनुष्यों को देवता,
बन्दर से मन्दिर लायक बनाने वाली मास्टर टीचर हूँ... मेरे चारों ओर मेरा अनुसरण
करने वाले कई लोग मेरे मार्ग दर्शन का इंतज़ार कर रहें हैं... मैं आत्मा श्वेत
वस्त्र धारण कर अपने गन्तव्य की ओर जा रहीं हूँ...
➳ _
➳
मेरा दिव्य चलन,
शांत और गंभीर स्वभाव ईश्वरीय सेवा में निमित्त है... मेरा सहज जीवन और मधुर
बोल कई आत्माओं को प्रेरित कर रहें हैं... मैं सेवाधारी आत्मा सदा अपनी रूची वा
उमंग से सेवा में बिज़ी रहती हूँ... मैं आत्मा आज अपने भोले बाबा के समक्ष यह
दृढ़ संकल्प लेती हूँ कि मैं सदा इसी उमंग वा उत्साह से सेवा में अपने को बिज़ी
रखूंगी...
➳ _
➳
मैं आत्मा स्थूल वा सूक्ष्म दोनों ही रीति से ख़ुशी - ख़ुशी से सेवा में बिज़ी
रहूंगी... मैं आत्मा स्वयं ही टीचर बन बुद्धि को बिज़ी रखने का डेली प्रोग्राम
बनाउंगी... इन्हीं श्रेष्ठ संकल्पों के साथ मैं आत्मा यह अनुभव कर रहीं हूँ कि
मैं माया के वार से सेफ रहने लगीं हूँ...
➳ _
➳
माया को मुझ सेवाधारी आत्मा के समक्ष वार करने का बिलकुल भी चांस नहीं मिल रहा
है... क्योंकि जब हम आत्माएं संकल्प से,
बुद्धि से,
चाहे
स्थूल कर्मणा से फ्री रहते हैं तो ही माया चांस लेती है...
➳ _
➳
पर मुझ आत्मा के सदा सेवा में बिज़ी रहने की ख़ुशी के कारण माया भी सामना करने का
साहस नहीं कर पा रही है... मैं पदमापदम भाग्यशाली आत्मा माया को हरा कर मायाजीत
बनने का अनुभव कर रहीं हूँ... मैं विजयी आत्मा बन गयीं हूँ ।
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5
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सार
-
ज्ञान मंथन
(Marks:-10)
➢➢
"मीठे
सेन्सिबिल बच्चे - सदा याद रखो की हम अविनाशी आत्मा है, हमे अब बाप के साथ पहले
तबके (फ्लोर) में जाना है"
❉
प्यारा बाबा कहे - मेरे मीठे बच्चे अपनी खूबसूरत दमकते सच्चे स्वरूप जो अविनाशी
है सदा यादो में बसाओ... वही से उतरकर यहाँ खेल में आये और खेलते खेलते मैले हो
चले हो... अब उसी आत्मिक स्तिथि को यादो में निरन्तर ताजा करो क्योकि अपने पिता
के साथ घर जाना है...
❉
मीठा
बाबा कहे - मेरे मीठे प्यारे बच्चे अविनाशी आत्मा हो... इसे कभी भूलो नही... यह
अविनाशी होना ही कितनी प्यारी खूबसूरत सच्चाई है इस नशे में डूब जाओ... इस मिटटी
के खेल में जो मटमैले हो चले... अविनाशी आत्मा हूँ... के नशे से उसे धो डालो...
अब पिता के साथ पहले तबके परमधाम में चलना है...
❉
प्यारा बाबा कहे - मीठे प्यारे बच्चे अविनाशी आत्मा होकर विनाशी बातो में चीजो
में रिश्तो में फसकर खुद को देह मान बेठे हो... अब सच्ची आत्मिक स्म्रति को
जगाओ... और इसे निरन्तर हर संकल्प में समाओ... यह तो खेल मात्र था जो पूरा हुआ...
अब पिता संग... उसी सुंदर असली रूप में घर चलना है...
❉
मीठा
बाबा कहे - मेरे आत्मन बच्चे तुम यहाँ के तो वासी ही नही हो... सिर्फ पार्ट
बजाने ही उतर आये हो... शरीर तो हो ही नही भीतर बेठी प्यारी अविनाशी आत्मा
हो... इस सच को प्रतिपल यादो में भरो... कि अब समय हो चला पिता के साये में घर
को जाना है...
❉
मेरा
बाबा कहे - प्यारे बच्चे सबसे ऊँचे तबके में रहने वाली अविनाशी आत्मा... धरती
पर पार्ट बजाने उतरी तो क्या से क्या हो चली... खुद को शरीर समझ उलझ गयी... जब
सब ही बच्चे भूल चले तो पिता को आकर सच्चा सच बताना पड़ा... तो उस सच्चे भान
अविनाशीपन में खो जाओ... इसी स्वरूप मे ही मूलवतन घर जाना है...
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6
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मुख्य धारणा-ज्ञान मंथन(Marks-10)
➢➢
अभी से ही
बाप की श्रीमत पर ऐसे श्रेष्ठ कर्म करने हैं, जो फिर कभी कर्म कूटने न पड़े
अर्थात कर्मों की सजायें न खानी पड़े
❉
इस पुरुषोत्तम संगमयुग पर सत बाप का संग मिला है तो सतसंग में रहना है व रंग का
संग अपने ऊपर चढ़ाना है । ऊंच ते ऊंच बाप की ही श्रीमत पर चलना है ।
❉
जैसे कर्म करेंगे उसका फल तो हमें भुगतना ही पड़ेगा । बाबा का बनने के बाद भी
अगर कुकर्म किए तो सौ गुणा सजा खानी पड़ेगी व पद भी भ्रष्ट होगा । इसलिए सजाओं
से बचने के लिए कोई डिससर्विस नही करनी ।
❉
हमें सर्वोच्च बाप की ही श्रेष्ठ मत पर चल श्रेष्ठाचारी बनना है । अपनी मनमत या
परमत मिक्स नही करनी । अपना हर कर्म बाप की याद में रहकर करना है । बाप की याद
में किया कर्म श्रेष्ठ ही होता है ।
❉
बाप ने हमें कर्म,
अकर्म और विकर्म की गुह्य गति का ज्ञान दिया है । इसे अच्छी रीति समझ अपना हर
कर्म करना है । ये संगमयुग ही ऐसा अनमोल समय है जिसमें हम जितना भाग्य बनाना
चाहे बना सकते हैं व भाग्य लिखने की कलम बाप ने बच्चों के हाथ में दी है ।
इसलिए श्रेष्ठ कर्म कर अपनी कमाई जमा करनी है ।
❉
ज्ञानी बनने के बाद कोई कुकर्म नही करना है वरना बाप से धर्मराज के रुप में
सजाऐं खानी पड़ेंगी । अगर कोई गल्ती हो भी जाए तो सब सच सच बाप को बताना है व
बताने से आधी सजा माफ हो जायेगी ।
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7
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वरदान
-
ज्ञान मंथन
(Marks:-10)
➢➢
स्थूल और
सूक्ष्म दोनों रीति से स्वयं को बिजी रखने वाले मायाजीत, विजयी होते हैं....
क्यों और कैसे ?
❉
जिन बच्चों को ये नशा होता कि हमें तो स्वयं भगवान ने अपने विश्व परिवर्तन के
कार्य के निमित्त चुना व ईश्वरीय सेवा मिलना बहुत बड़ी लाटरी है सौभाग्य है तो
अपने को इतनी बड़ी जिम्मेवारी के लिए निमित्त समझ स्थूल और सूक्ष्म दोनो रीति से
स्वयं को सेवा में बिजी रखते और मायाजीत विजयी होते हैं ।
❉
जो बच्चे स्वयं को स्थूल और सूक्ष्म दोनों रीति से स्वयं को सेवा में बिजी रखते
और अपनी बुद्धि को बिजी रखने का टाइम टेबल बनाकर अपनी रुहानी सेवाओं में बिजी
रखते तो माया भी बिजी देखकर भाग जाती ऐसे बच्चे मायाजीत,
विजयी होते हैं ।
❉
बाबा
जो करायेंगे,
बाबा
जैसे चलायेंगे ,बाबा
जहाँ बिठायेंगे,
जैसे
बिठायेंगे वैसे बैठूँगा और स्थूल में रहते भी सूक्ष्म में रहने वाले मायाजीत
विजयी होते है
❉
जो स्थूल में कार्य करते हुए भी अव्यक्त स्थिति में स्थित रहते हैं ऐसे अपने को
स्थूल और सूक्ष्म दोनो रीति से बिजी रखते व खुशी खुशी सेवा में बिजी रहते तो
माया भी आने की हिम्मत नही रखती वो मायाजीत विजयी होते हैं ।
❉
जो स्वयं को सेवाधारी समझ अपनी रुचि,
उमंग से सेवा में बिजी रहते और हर संकल्प,
बोल,
कर्म से बस बाबा के लिए होता और मनसा सेवा में बिजी रहते तो माया भी कोई चांस
नही ले सकती और वो मायाजीत विजयी होते है ।
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स्लोगन
-
ज्ञान मंथन
(Marks:-10)
➢➢
निश्चय और
फ़लक से कहो बाबा मेरे साथ है तो माया समीप आ नही सकती... क्यों और कैसे ?
❉
निश्चय और फ़लक से जब कहेंगे कि बाबा मेरे साथ है तो यह निश्चय और नशा परिक्षाओं
रूपी सागर में भी कभी अकेलेपन का भाव मन में नही आने देगा । सदैव अनुभव होगा कि
हमारी जीवन रूपी नैया बाप दादा के हाथ में है जो कभी भी डूब नही सकती । अपना
बुद्धि रूपी हाथ बापदादा के हाथ में दे देने से बापदादा की छत्रछाया हमारे चारों
और एक ऐसा सुरक्षा कवच बना देगी जिसके अंदर माया कभी आ नही सकेगी ।
❉
सर्वशक्तिवान,
आलमाइटी अथॉरिटी स्वयं भगवान मेरा साथी है इस निश्चय में जब रहेंगे,
और
फलक से कहेंगे कि भगवान बाप मेरे साथ है तो बाप द्वारा मिली सर्व शक्तियों की,
सर्व नॉलेज की और स्व पर राज्य करने की अथॉरिटी भी सदैव स्मृति में रहेगी । और
इस नॉलेज की अथॉरिटी से जब पावरफुल स्वरूप की स्टेज पर स्थित रहेंगे । तो सर्व
प्राप्त हुई शक्तियों की अथॉरिटी माया जीत और प्रकृति जीत बना देगी जिसके कभी
समीप भी माया आ नही सकेगी ।
❉
बाबा
मेरे साथ है यह निश्चय और नशा आत्मा को सर्व शक्ति सम्पन्न स्थिति का अनुभव करवा
कर सर्वशक्ति स्वरूप बना देगा । जिससे सर्व शक्तियां स्मृति में रहने के कारण
सदा इमर्ज रूप में रहेंगी । किन्तु ये शक्तियां समय पर तभी कार्य में लगा सकेंगे
। जब बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी । और बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन तभी होगी
। जब मन में किसी भी प्रकार का कोई संशय नही होगा । स्वयं पर और बाप पर
सम्पूर्ण निश्चय कर जब इन शक्तियों को कार्य में लगाएंगे तो माया दूर से ही भाग
जायेगी ।
❉
भगवान मेरा साथी है,
केवल यही ख्याल जब बुद्धि में चलता रहेगा तथा सिवाय इस ख्याल के और कोई ख्याल
बुद्धि में जब नही आएगा तो यह निश्चय का बल जीवन में आने वाले हर आंधी और तूफान
पर,
हर
परिस्थिति पर विजय दिला देगा । क्योंकि निश्चय से प्रीत बुद्धि होती है और
प्रीत बुद्धि सदैव विजयंती रहते हैं । इसलिए निश्चय जितना मजबूत होगा उतना माया
के तुफानो का सामना करना और परिस्थिति रूपी पहाड़ को पार कर मंजिल पर पहुंचना
स्वत: ही सहज हो जायेगा ।
❉
जैसे
गेहूं पीसने वाली चक्की में सब कुछ पिस जाता है लेकिन गेहूं के जो दाने कील के
साथ लगे रह जाते हैं वो ऐसे के ऐसे रह जाते हैं । इसी प्रकार जो सदैव इस निश्चय
और नशे में रहते हैं कि बाबा मेरे साथ है । यह निश्चय और नशा उन्हें सदा बाबा
की शक्तिशाली भुजाओं के नीचे सेफ रखता है और एक ऐसा सेफ्टी का किला बना देता है
कि माया अथवा कोई भी विघ्न उस किले से टकरा कर स्वत: ही समाप्त हो जाता है । और
आत्मा इस किले के अंदर बिलकुल सुरक्षित रहती है । माया उसके समीप भी नही आ सकती
।
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⊙_⊙
आप
सभी बाबा के प्यारे प्यारे बच्चों से अनुरोध है की रात्रि में सोने से पहले बाबा को
आज की मुरली से मिले
चार्ट के हर पॉइंट के मार्क्स ज़रूर दें ।
♔
ॐ शांति
♔
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